Tuesday 7 July 2015

बारिश के मौसम में सर्दी-जुकाम जब करे परेशान

ध्यान रखें कि बारिश के मौसम में हमारी पाचन क्रिया और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. इस लिए हमारी खान-पान उसी प्रकार होना चाहिए. उन खाने-पीने की चीजों का इस्तेमाल न करें, जो पचने में भारी हों. बीमार होने पर कुछ ऐसी दवाओं का इस्तेमाल करें और हमारे पेट को ठीक करे.
बारिश में भीगे नहीं कि सर्दी-जुकाम का शिकार! फिर शुरु होता घरेलू नुस्खों का दौर. अदरक, लौंग आदि की चाय. नहीं आराम आया तो भागे अंग्रेजी दवाओं के डाॅक्टर के पास. तुरंत ठीक भी होना है. लेकिन एक यह भी सच्चाई है कि ज्यादा अंग्रेजी दवाओं का प्रयोग शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को घटा देता है. छोटी-छोटी तकलीफों में अंग्रेजी दवाओं के प्रयोग शरीर के लिए घातक साबित होता है. इसलिए अच्छा रहे कि बात-बात पर अंग्रेजी दवाओं के बजाय अन्य पद्धति की दवाओं का इस्तेमाल करें. जैसे होम्योपैथी. होम्योपैथी रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाकर बीमारी को दूर करती है, वो भी शरीर को हानि पहुंचाए बिना. सबसे बड़ी बात यह कि जब आपको अंग्रेजी दवाओं की जरूरत पड़ ही जाए तो अंग्रेजी दवाएं अधिक कारगर तरह से काम करती हैं और जल्दी ठीक भी होते हैं.
होम्योपैथी में सर्दी-जुकाम के लिए दवाओं का भंडार है. एकोनाईट, नेट्रम म्यूर, चायना, फेरम फाॅस, नेट्रम सल्फ, एलियम सीपा, सेंगुनैरिया, एसिड फास आदि
ध्यान रखें, जल्दी-जुल्दी सर्दी-जुकाम होने का मतलब आपका लीवर कमजोर होना भी है. बारिश के मौसम में हमारा लीवर अधिक प्रभावित होता है. इसलिए सर्दी-जुकाम की दवा के साथ-साथ लीवर की दवा भी ले लेनी चाहिए. यदि सर्दी-जुकाम के साथ एसिडिटी बनने और छाती में जलन है तो आईरिश वर्सि0 और नेट्रम सल्फ भी लें.
एकोनाइट नेपलेस: तेज छींक, तेज प्यास है तो इसे जरूर लें. इसके साथ नेट्रम म्यूर, चायना, भी लें.
कुछ दवाओं के संक्षिप्त लक्षण:
एकोनाइट नेपलेस: अचानक ठण्ड लग जाने तथा बार-बार छींक आने पर यह दवा काम करती है. किसी भी तकलीफ की तीव्रता में इसका अच्छा काम रहता ही है, साथ ही गला सूखता हो और तेज प्यास हो तो यह दवा तुरंत अपना असर दिखाती है. तेज छींक में इसके साथ नेट्रम म्यूर भी ले लेनी चाहिए. दोनों दवाओं की 30-30 पावर लेकर देखें. यह भी ध्यान रखें कि किसी समय खांसते-खांसते काफी परेशानी हो रही हो, बेचैनी घबराहट लगे, पानी की प्यास भी हो तो एक खुराक दे देनी चाहिए. यह किसी भी तकलीफ की बढ़ी हुई अवस्था, घबराहट, बेचैनी में बहुत अच्छा काम करती है तथा तकलीफ की तीव्रता कम कर देती है.
नेट्रम म्यूरियेटिकम:  हम जो नमक खाते हैं, उसी से यह दवा तैयार होती है. हल्की सी ठण्ड होते ही सर्दी-जुकाम हो जाता है. इस दवा का मुख्य लक्ष्ण है हाथ, पैर ठण्डे रहना. जिस भी बीमारी में यह लक्षण रहे, यह दवा उसे जरूर देकर देखनी चाहिए- चाहे बीमारी कोई भी हो.
बहुत अच्छा खाना खाने पर भी शरीर कमजोर रहना. बार-बार छींक आने, कब्ज रहने और प्यास लगने पर एकोनाइट नेपलेस के साथ इस दवा को देना चाहिए.
रस टाक्सिकोडेण्ड्रन: ठण्ड या पानी में भीग जाने के कारण सर्दी, जुकाम हो जाने और बदन दर्द में इस दवा का अच्छा काम है.
फेरम फास: रक्त संचय में अपनी क्रिया करती है. कोई तकलीफ एकाएक बढ़ जाने और किसी तकलीफ की प्रथम अवस्था में इसका अच्छा इस्तेमाल किया जाता है. यह किसी भी प्रकार की खांसी- चाहे बलगमी हो या सूखी सब में फायदा करती है. कमजोर व्यक्तियों ताकत देने में यह दवा काम में लाई जाती है. क्योंकि कुछ रोग कमजोरी, खून की कमी की वजह से लोगों को परेशान करते हैं. अतः खून में जोश पैदा करने का काम करती है. फेरम फाॅस आयरन है और दवा आयरन की कमी को भी दूर करती है.
नेट्रम सल्फ: जब मौसम में नमी अधिक होती है, चाहे मौसम सर्दी का हो या बारिश का या फिर और रात उस समय खांसी बढ़ती है. खांसते-खांसते मरीज कलेजे पर हाथ रखता है, क्योंकि खांसने से कलेजे में दर्द बढ़ता है. दर्द बाईं तरफ होता है. दवा दमा रोगियों को फायदा करती है. क्योंकि दमा रोगियों की तकलीफ भी बारिश के मौसम व ठण्ड के मौसम में बढ़ती है.
संगुनेरिया: रात में भयंकर सूखी खांसी, खांसी की वजह से मरीज सो नहीं सकता, परेशान होकर उठ जाना और बैठे रहना. लेकिल बैठने से तकलीफ कम न होना. सोने पर खांसी बढ़ना. दस्त के साथ खांसी. इसके और भी लक्षण है, महिलाओं को ऋतु गड़बड़ी की वजह से खांसी हुई हो तो उसमें यह फायदा कर सकती है. पेट में अम्ल बनने की वजह से खांसी होना, डकार आना. हर सर्दी के मौसम में खांसी होना.
एलियम सीपा: इस दवा का मुख्य लक्षण है जुकाम के समय पानी की तरह नाक से पानी बहना. बहुत तेज छींक. आंख से पानी आना. नाक में घाव होना. जुकाम के कारण सिर में दर्द हो जाना. गरमी में बीमारी बढ़ना.
चायना: चायना का कमजोरी दूर करने भूख बढ़ाने में बहुत अच्छा काम है. खांसी हो, भूख कम लगती हो तो कोई भी दवा लेते समय यह दवा ले लेनी चाहिए. काफी बार लीवर की कमजोरी, शरीर की कमजोरी की वजह से बार-बार खांसी परेशान करती है, बार-बार निमोनिया हो जाता है, खासकर बच्चों को. यदि चायना, केल्केरिया फाॅस, फेरम फाॅस कुछ दिन लगातार दी जाए तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है. इस दवा के खांसी में मुख्य लक्षण है- खांसते समय दिल धड़कने लगता है, एक साथ खांसी अचानक आती है कपड़े कसकर पहनने से भी खांसी होती है. इसकी खांसी अक्सर सूखी होती है.
हीपर सल्फ:  इसकी खांसी बदलती रहती है, सूखी हो सकती है, और बलगम वाली भी. हल्की सी ठण्डी लगते ही खांसी हो जाती है. यही इस दवा का प्रमुख लक्षण भी है. ढीली खांसी व काली खांसी में भी यह विशेष फायदा करती है. जिस समय ठण्डा मौसम होता है, उस समय अगर खांसी बढ़ती हो तो, तब भी यह फायदा पहुंचाती है. जैसे सुबह, रात को खांसी बढ़ना. लेकिन ध्यान रखें कि यदि स्पंजिया दे रहे हों, तो हीपर सल्फ नहीं देनी चाहिए, यदि हीपर सल्फ दे रहे हों, तो स्पंजिया नहीं देनी चाहिए.
बेलाडोना: गले में दर्द के साथ खांसी, खांसी की वजह से बच्चे का रोना, कुत्ता खांसी, भयंकर परेशान कर देने वाली खांसी, खांसी का रात को बढ़ना. खांसी सूखी होना या काफी खांसी होने के बाद या कोशिश के बाद बलगम का ढेला सा निकलना. गले में कुछ फंसा सा अनुभव होना. बलगम निकलने के बाद खांसी में आराम होना, फिर बाद में खांसी बढ़ जाना.
इपिकाक: इसका मुख्य लक्षण है, खांसी के साथ उल्टी हो जाना. उल्टी आने के बाद खांसी कुछ हल्की हो जाती है. सांस लेते समय घड़-घड़ जैसी आवाज आना, सीने में बलगम जमना आदि इसके लक्षण हैं. यह दवा काफी तरह की खांसियों में फायदा करती है, चाहे निमोनिया  या दमा. कई बार ठण्ड लगकर बच्चों को खांसी हो जाती उसमें भी फायदा करती है. खांसते-खांसते मुंह नीला, आंख नीली हो जाना, दम अटकाने वाली खांसी छाती में बलगम जमना आदि इसके लक्षण हैं.
चेलिडोनियम: दाहिने कन्धे में दर्द होना, तेजी से सांस छोड़ना. बलगम जोर लगाने से निकलता है, वो छोटे से ढेले के रूप में. सीने में से बलगम की आवाज आती है. लीवर दोष की वजह से हुई खांसी में बहुत बढि़या क्रिया दिखाती है. खांसते-खांसते चेहरा लाल हो जाता है. खसरा व काली खांसी के बाद हुई दूसरी खांसी में इससे फायदा होता है.
कोनियम मैकुलेटम: बद्हजमी के साथ खांसी. खांसी सूखी जो स्वर नली में उत्तेजना से उत्पन्न खांसी. इस दवा का प्रमुख लक्षण है, खांसी रात को ही अधिक बढ़ती है, जैसे कहीं से उड़कर आ गई हो. खांसी के साथ बलगम आता है तो मरीज उसे थूकने में असमर्थ होता है, इसलिए उसे सटक जाता है.
एसिड फास्फोरिकम: यह दवा शरीर में ताकत देने का काम करती है और जवान होते बच्चों में अच्छी क्रिया करती है. इसकी क्यू पावर बहुत ही कारगर साबित हुई है. स्नायु कमजोरी और नर्वस सिस्टम को ठीक करती है. बहुत ही जल्दी सर्दी लग जाना. नाक से पानी बहना. तेज छींक, सोने के बाद खांसी बढ़ना. गले में सुरसरी होकर खांसी होना.
ध्यान रखें कि बारिश के मौसम में हमारी पाचन क्रिया और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. इसलिए हमारा खान-पान उसी प्रकार होना चाहिए. उन खाने-पीने की चीजों का इस्तेमाल न करें, जो पचने में भारी हों. बीमार होने पर कुछ ऐसी दवाओं का इस्तेमाल करें और हमारे पेट को ठीक करे.
नोट: उपरोक्त लेख केवल होम्योपैथी के प्रचार हेतु है. कृपया बिना डाॅक्टर की सलाह के दवा इस्तेमाल न करें. कोई भी दवा लेने के बाद विपरीत लक्षण होने पर पत्रिका की कोई जिम्मेवारी नहीं है. 

Saturday 18 April 2015

कटने, छिलने, जलने, चोट लगने पर प्राथमिक उपचार का अच्छा विकल्प है होम्योपैथी


अक्सर घर परिवार, रास्ते-बीच में चिकित्सक के उपलब्ध न रहने तक प्राथमिक उपचार की जरूर हो जाती है. लेकिन प्राथमिक उपचार में होम्योपैथी से बढि़या कोई विकल्प नहीं है, इस बात का कोई प्रचार नहीं किया जाता. हालांकि काफी मामलों में होम्योपैथी बिना किसी जोखिम के बहुत कारगर हो जाती है. क्योंकि होम्योपैथी यदि फायदा नहीं पहुंचाती तो नुकसान भी कोई नहीं करती. प्राथमिक उपचार के कुछ उदाहरण देखिएः

चोट लगने पर होम्योपैथी :

घर में कोई न कोई दुर्घटना हो ही जाती है. सब्जी काटते समय यदि हाथ में चाकू लग गया तो खून बहने लगता है. कई बार रोके नहीं रुकता. यदि डाक्टर तक भागा जाए तो डाक्टर तक पहुंचने में काफी देर जाएगी, ऊपर से वहां लाईन लगी मिली तो और भी दिक्कत. जब तक शरीर के लिए अमृत खून काफी मात्रा में बह जाएगा. बहुतों को तो खून देखते ही घबराहट होने लगती है. कई बार परिवारों में चोट लगने या कटने पर घरेलू कपड़ा या पट्टी बांध ली जाती है, जो कि कई बार जोखिम बन जाती है, क्योंकि वहां सेप्टिक बनने का खतरा बन जाता है या हो जाता है- जिसके बाद घाव ठीक होना मुश्किल हो जाता है या ठीक होता ही नहीं, फिर वह अंग काटना पड़ सकता है. लेकिन होम्योपैथी से ऐसा कोई जोखिम नहीं रहता. घाव भी जल्दी ठीक हो जाता है.
इसके लिए आप होम्योपैथी की हैमामेलिस वरजिनिका क्यू, हैमामेलिस वरजिनिका -30, आर्निका मोण्टेना-30, फेरम फास-30, एकोनाईट-30, हाइपेरिकम-30, लिडम पैलस्टर आदि रखिए. जैसे चोट आदि के कारण कहीं से खून बहने लगे तो तुरंत उस स्थान पर हैमामेलिस वरजिनिका की क्यू पावर वहां छिड़क दीजिए या रूई से लगा लें. और हैमामेलिस वरजिनिका की क्यू पावर की 10-12 बूंद आधा कप पानी में डालकर पी लीजिए, देखिए कितनी जल्दी खून बन्द होता. फिर चाहे आप डाक्टर से पट्टी कराएं या कोई क्रीम लगाकर पट्टी बांध लें. आप हेमामेलिश की भी नियमित पट्टी कर सकते है. घाव भी जल्दी ठीक होगा. इसके साथ आर्निका मोण्टेना-30, फेरफ फास-30, केल्केरिया सल्फ-30 भी कुछ दिन खा सकते हैं. आर्निका मोण्टेना-30 एंटीसेप्टीक का बहुत बढि़या काम करती है. यह सेप्टीक नहीं बनने देती. इसे लेने पर आपको कोई इंजेक्शन लगवाने की जरूरत नहीं है.

यदि घाव हड्डी तक हो गया है तो हाईपैरिकम-30, केल्केरिया फास-30 लें, रूटा-30 ले सकते हैं.
यदि दर्द में आर्निका लेने से आराम न आ रहा हो तो लिडम पैलस्टर-30 लेंकर देखें.
हड्डी टूटने के बाद जुड़ने में समय लग रहा हो या जुड़ने में परेशानी हो रही हो तो केल्केरिय फास-30 तथा ले लें-  सिम्फाइटस आफिसिनेल, लें. ले लें-  सिम्फाइटस आफिसिनेल हड्डी जोड़ने की बहुत बढ़िया दवाई है. यह दवा पीने व लगाने दोनों में अच्छा काम करती है.

चोट, कटने से हुआ घाव ठीक न हो रहा हो, उसमें पीब पड़ गई हो तो
आर्निका मोण्टेना-30
साईलेशिया-30
केल्केरिया सल्फ-30 लें.
किसी दुर्घटना के कारण बेहोशी आदि हो रही हो तो रेस्क्यू-30 दें.
यदि आंख की पुतली में चोट लग गई है तो आर्निका-30, फेरमफास-30 लें. साथ ही इनमें से एक दवाई साथ में आर्टिमिसिया वल्गैरिस लें.आर्टिमिसिया वल्गैरिस आंख की चोट की बहुत बढ़िया दवाई है. यह दवाई आंख में चोट लगने पर दूसरी परेशानियों को भी दूर करती है.
चोट, खरोंच पर लगाने के लिए कैलेण्डुला, आर्निका की क्रीम भी आती है. जले हुए स्थान पर लगाने के लिए केन्थरिश की भी क्रीम आती है. यह क्रीमें हमेशा घर में रखनी चाहिए.

जलने पर होम्योपैथी :

इसी तरह यदि किसी कारण शरीर का कोई भाग जल जाए तो आप कैन्थरिश की क्यू व 30 पावर जरूर रखें. कैन्थरिश की क्यू पावर की कुछ बूंदे पानी में डालकर जले भाग लगाएं, तुरंत आराम आएगा, फफोले भी नहीं पड़ेंगे. जलन भी खत्म होगी व घाव जल्दी ठीक होगा. कैन्थरिश क्यू की क्रीम भी होम्योपैथी की दुकान पर मिलती है.  इसे घर में रखें. कुछ दिन कैन्थरिश -30 व फेरम फास-30 को गोली में बनाकर 4-4 गोली दिन में चार बार लें. देखिए, घाव कितनी जल्दी ठीक होता है, आप भी अचंभा करेंगे. दो दवाओं के बीच में 10 मिनट का अंतर रखें.

सेप्टिक(टिटनेस) को भी ठीक करती है होम्योपैथी

आर्निका माण्टेना-30 एंटीसेप्टिक का बहुत बढि़या काम करती है. किसी भी तरह से चोट लगने पर, यानी लोहे से भी चोट लगने पर आर्निका माण्टेना-30 ले लेनी चाहिए. इसके साथ लिडम पैलस्टर-30 भी ले  सकते हैं.  यह सेप्टिक नहीं बनने देती. इसे लेने पर आपको कोई इंजेक्शन लगवाने की जरूरत नहीं. यदि चोट लगने के बाद सेप्टिक बन गया है, इलाज कराते-कराते भी ठीक नहीं हो रहा है तो एक बार होम्योपैथी का जरूर इस्तेमाल करके देखें. सेप्टिक होने की वजह से गल रहा अंग कटने से बच सकता है. घाव सुखाने, पीप रोकने-सोखने, ठीक करने में केल्केरिया सल्फ जैसी अनेक दवाईंया हैं, जो घाव को ठीक कर देती हैं. आर्निका माण्टेना, लीडम जैसी दवाईंयां सेप्टिक को ठीक करने में बहुत कारगर है. आर्निका माण्टेना, कैलेण्डूला के मरहम भी मिलते हैं. मरहम चोट पर लगाएं. कैलेण्डुला भी कटे-छिले घाव के लिए अच्छी दवा है. यह दर्द को कम करती है.


कीट पतंगे काटने पर :

कई बार घर में या दूसरी जगह ततैया, मधु मक्खी, आदि शरीर में कहीं न कहीं डंक मार देते हैं. डंक इतना भयंकर होता है कि डंक वाले स्थान पर बहुत दर्द होता है. शरीर का वह हिस्सा सूज भी जाता है. आप इस तरह के समय के लिए घर में लिडम पैलस्टर व एपिस मेल रखें. डंक वाले स्थान पर लिडम पैलस्टर  क्यू की कुछ बूंद छिड़के या रूई से लगाएं. साथ ही लिडम पैलस्टर-30 तथा एपिस मे.30 की  4-4 बूंदे 10-10 मिनट के अंतर से जीभ पर डालकर लें. यह दवाईंया सूजन नहीं होने देगी, यदि सूजन हो गई तो उसे जल्द ठीक करेगी. दर्द को भी कम करेगी. चूहे के काटने पर भी यह दवा प्रयोग कर सकते हैं, उसी तरह.

 नक्सीर छूटने होने पर : 

कई बार तेज धूप, गर्मी की वजह से नक्सीर छूट जाती है और तेज खून नाक से बहने लगता है, डाक्टर के पास ले जाने तक काफी देर हो सकती है. इसके प्राथमिक उपचार के लिए प्रथम तो सिर पर गीला तौलिया रख दें. उसके बाद यदि लाल सुर्ख खून हो तो तुरंत पहले हेमामेलिश क्यू में 12 बूंद आधा कप पानी में पिला दें. यही दवा नाक में किसी प्रकार डालें, इसके लिए चम्मच, रूई आदि का प्रयोग कर सकते हैं. फिर एकोनाईट नेपलेस-30 की 4 बूंदे मुंह में डालें. इसके बाद ब्रायोनिया-30 की 4 बंदें दें. दवाईंया देने में 10-10 मिनट का अंतर रखें
नियमित तौर पर दवाई खाने के लिए लक्षण देखकर दवाई दें. जैसे :
एकोनाईट नेपलेस-30
ब्रायोनिया ऎल्ब-30
मेरे अनुभव में एक व्यक्ति की 6-7 साल पुरानी नक्सीर ब्रायोनिया-30 से ठीक हो गई थी, 5 साल हो गये ठीक हुए, उसे आज तक दोबारा नहीं छूटी.

ध्यान रखें : उपरोक्त जानकारी होम्योपैथी के प्रचार व जानकारी बढ़ाने के लिए है. इसलिए कोई दवा डाक्टर की सलाह से या अच्छी तरह सोच-समझकर व अध्ययन के बाद ही लें.

Thursday 19 February 2015

होम्योपैथी में भी है स्वाइन फ्लू का इलाज संभव

* स्वाइन फ्लू बीमारी इन्फ्लूएनजा (एच1एन1) वायरस से होती है  * यह वायरस मनुष्य से ड्रोपलेट इन्फेक्शन से फैलता है. खांसने-छीकने पर एक से चार मीटर की दूरी वाले व्यक्ति प्रभावित होते हैं * रोगी के शरीर में वायरस 1 से 7 दिन में फैल जाता है * 24 से 48 घंटे में इलाज मिलने पर खतरे को टाला जा सकता है
दै. भास्कर से साभार!
.स्वाइन फ्लू इन दिनों अखबारों से लेकर टीवी समाचार चैनलों में छाया हुआ है. इन दिनों स्वाइन फ्लू के बारे में इस तरह के हालात बन गए हैं कि कहना पड़ रहा है, " मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की।" लेकिन आप स्वाइन फ्लू बीमारी से डरें नहीं, जागरूक रहें. सतर्क रहने पर स्वाइन फ्लू फैलता भी नहीं है.
जैसे कि पिछली पोस्टों में बताया जा चुका है कि होम्योपैथी चिकित्सा से इलाज में मुख्यत बीमारी से शरीर में उत्पन्न  लक्षण ही महत्वपूर्ण है. मानसिक लक्षण भी देखे जाते हैं, उन्हीं के आधार पर इलाज होता है. शारीरिक, मानसिक लक्षणों के आधार पर कठिन, जटिल बीमारियों का इलाज होम्योपैथी से संभव है.
स्वाइल फ्लू के  आम लक्षण: जुकाम, खांसी, नाक बंद होना, सिर में दर्द, थकावट महसूस होना, गले में खराश, शरीर में दर्द, ठंड लगना, जी मिचलाना, उल्टी होना और दस्त भी हो सकते है. कुछ लोगों में श्‍वांस लेने में तकलीफ भी हो सकती है. स्वाइन फ्लू के ज्यादातर मरीजों में थकावट के लक्षण पाए जाते हैं. स्वाइन फ्लू के प्राथमिक लक्षण दिखने में एक से चार दिन लग सकते हैं. इन सभी लक्षणों में इपिका, जेल्सियम, एकोनाइट, एलिएम सीमा, फेरमफास, रसटक्स, चायना, बेलाडोना, आर्सेनिक-एल,  टयूबर कुलीनम आदि दवाइयां काम कर सकती हैं. लेकिन यहां दवाओं के बारे में केवल जानकारी के लिए बताया जा रहा है. यदि स्वाइल फ्लू के लक्षण लग रहे हैं तो किसी अच्छे होम्योपैथी चिकित्सक की सलाह से दवा लें. जिन लोगों में रोग प्रतिरोध क्षमता कम है तो वह दो तीन महीने चायना, नेट्रम म्यूर, फेरम फास 30 पावर में लेकर देख सकते हैं. होम्योपैथी दवाएं एलोपैथी दवाओं के साथ भी ले सकते हैं. लेकिन दोनों दवाइयों के बीच अंतर कम से कम एक घंटे का होना चाहिए, दूसरा होम्योपैथी दवा लेने से पहले एलोपैथी दवा लेनी चाहिए. होम्योपैथी दवा एलोपैथी दवा से पहले लेंगे तो एलोपैथी दवा होम्योपैथी को क्रिया नहीं करने देगी.

राजस्थान संस्करण के दै. भास्कर  में प्रकाशित यह रिपोर्ट यहां दी जा रही है-
खंडवा. स्वाइन फ्लू होने पर तो एलोपैथी के साथ ही होम्योपैथ और आयुर्वेद में भी इसका आसान इलाज है. जरूरत समय से रोग को पहचानने की है.
जिला अस्पताल में एलोपैथ के साथ होम्योपैथ और आयुर्वेद में स्वाइन फ्लू का इलाज मिलता है. आयुर्वेद और होम्योपैथिक क्लीनिक में सर्दी-जुकाम और गले में खराश के मरीजों का इलाज हो रहा है. रोजाना 15 से 20 मरीज क्लीनिक में आ रहे हैं.
होम्योपैथिक डॉ. एसएन वर्मा मरीजों को प्रारंभिक लक्षण के आधार पर दवाएं दे रहे हैं. ज्यादा परेशानी होने पर स्वाइन फ्लू जांच के बाद अन्य दवाएं भी देंगे.
डॉ. वर्मा ने बताया जेलसीमीयम, आर्सेनिक-एल, एलियम सीपा, टयूबर कुलीनम दवा मरीज को दी जाती है. होम्योपैथिक क्लीनिक में दवाओं का स्टॉक है. आयुर्वेदिक डॉ. वीआर वैश्य ने बताया क्लीनिक में त्रिभुवन कीर्ति रस, श्वास-कास चिंतामणि रस, श्रृंग भस्म, सीतोपलादी के साथ कफ की दवाएं हैं.

निजी डॉक्टरों को दिया प्रशिक्षण: निजी नर्सिंग होम एवं डॉक्टरों को जिला अस्पताल में रविवार को स्वाइन फ्लू के इलाज का प्रशिक्षण हुआ. सीएमएचओ डॉ.आरसी पनिका, सीएम
डॉ.ओपी जुगतावत, जिला नोडल अधिकारी योगेश शर्मा ने डॉक्टरों को इलाज और केटेगरी के बारे में जानकारी दी.

सी कटेगरी मरीज रैफर : निजी नर्सिंग होम में भर्ती मरीज स्वाइन फ्लू की सी कटेगरी में संदिग्ध मिला. पुनासा निवासी मरीज निजी नर्सिंग होम में 4 दिन से भर्ती था. रविवार को जिला अस्पताल और यहां से स्वाब लेकर इंदौर रैफर किया. नोडल अधिकारी डॉ. संतोष श्रीवास्तव ने बताया दो संदिग्ध भर्ती हैं. सी कटेगरी में सस्पेक्टेड मरीज का सैंपल लेकर इंदौर भेजा है.

आयुर्वेद में यह उपाय :-
- 4-5 तुलसी के पत्ते, 5 ग्राम अदरक, चुटकीभर कालीमिर्च पावडर और हल्दी को एक कप पानी में उबालकर दिन में दो-तीन बार पीएं.
- गिलोय बेल की डंडी को पानी में उबालें. छानकर पीएं.
- आधा चम्मच आंवला पावडर को आधा कप पानी में मिलाकर दिन में दो-तीन बार पीएं.

ये है स्वाइन फ्लू

ये है स्वाइन फ्लू

एच१एन१ स्पैनिश फ्लु से आया, जो 1918 और १९१९ 1919 के दौरान फैली एक महामारी थी जिससे लगभग ५ करोड़ लोग मारे गए थे. जो वायरस स्पैनिश फ्लु से आया वह सूअरों में विद्यमान रहा. इसका संचलन २० वीं सदी के दौरान मनुष्यों में भी हुआ, यद्यपि यह वर्ष के उस समय होता है जब प्रतिवर्ष होने वाली महामारियाँ फैलती हैं, जिससे 'सामान्य' इंफ्लुएंजा और शूकर इंफ्लुएंजा में अंतर कर पाना कठिन है. हालांकि सुअरों से मनुष्यों में होने वाले संक्रमण के मामले बहुत विरल हैं और २००५ के बाद से अमेरिका में १२ मामले पाए गए हैं.
– स्वाइन फ्लू बीमारी इन्फ्लूएनजा (एच1एन1) वायरस से होती है
– यह वायरस मनुष्य से ड्रोपलेट इन्फेक्शन से फैलता है. खांसने-छीकने पर एक से चार मीटर की दूरी वाले व्यक्ति प्रभावित होते हैं
– रोगी के शरीर में वायरस 1 से 7 दिन में फैल जाता है
– 24 से 48 घंटे में इलाज मिलने पर खतरे को टाला जा सकता है

स्वाइन फ्लू के लक्षण आम बीमारियों की तरह ही होते हैं लेकिन डॉक्टरों ने इसके पहचान के लिए कुछ लक्षण निर्धारित किए हैं. डॉक्टर स्वाइन फ्लू को एक आम बीमारी की तरह ही मान रहे हैं बशर्ते समय से इसका ईलाज जरूरी है. कैसे फैलते हैं इसके वाइरसः यह वाइरस पीड़ित व्यक्ति के छींकने, खांसने, ‌हाथ मिलाने और गले मिलने से फैलते हैं. वहीं स्वाइन फ्लू का वाइरस स्टील प्लास्टिक में 24 से 48 घंटों तक, कपड़ों में 8 से 12 घंटों तक, टिश्यू पेपर में 15 मिनट तक और हाथों में 30 मिनट तक सक्रिय रहता है. शुरुआती लक्षण: लगातार नाक बहना, मांसपे‌शियों दर्द या अकड़न महसूस होना, सिर में तेज दर्द, लगातार खांसी आना, उनींदा रहना, थकान महसूस होना, बुखार होना और दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना आदि.

आम लक्षण: जुकाम, खांसी, नाक बंद होना, सिर में दर्द, थकावट महसूस होना, गले में खराश, शरीर में दर्द, ठंड लगना, ‌जी मिचलाना, उल्टी होना और दस्त भी हो सकती है. कुछ लोगों में श्‍वांस लेने में तकलीफ भी हो सकती है. स्वाइन फ्लू के ज्यादातर मरीजों में थकावट के लक्षण पाए जाते हैं. स्वाइन फ्लू के प्राथमिक लक्षण दिखने में एक से चार दिन लग सकते हैं.


एच१एन१ स्पैनिश फ्लु से आया, जो 1918 और 1919 के दौरान फैली एक महामारी थी जिससे लगभग 5 करोड़ लोग मारे गए थे. जो वायरस स्पैनिश फ्लु से आया वह सूअरों में विद्यमान रहा. इसका संचलन २० वीं सदी के दौरान मनुष्यों में भी हुआ, यद्यपि यह वर्ष के उस समय होता है जब प्रतिवर्ष होने वाली महामारियाँ फैलती हैं, जिससे 'सामान्य' इंफ्लुएंजा और शूकर इंफ्लुएंजा में अंतर कर पाना कठिन है. हालांकि सुअरों से मनुष्यों में होने वाले संक्रमण के मामले बहुत विरल हैं और 2005 के बाद से अमेरिका में 12 मामले पाए गए हैं.

शूकर इन्फ्लूएंजा, जिसे एच1एन1 या स्वाइन फ्लू भी कहते हैं, विभिन्न शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणुओं मे से किसी एक के द्वारा फैलाया गया संक्रमण है. शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणु (SIV-एस.आई.वी), इन्फ्लूएंजा कुल के विषाणुओं का वह कोई भी उपभेद है, जो कि सूअरों की स्थानिकमारी के लिए उत्तरदायी है.[2] 2009 तक ज्ञात एस.आई.वी उपभेदों में इन्फ्लूएंजा सी और इन्फ्लूएंजा ए के उपप्रकार एच1एन1 (H1N1), एच1एन2 (H1N2), एच3एन1 (H3N1), एच3एन2 (H3N2) और एच2एन3 (H2N3) शामिल हैं. इस प्रकार का इन्फ्लूएंजा मनुष्यों और पक्षियों पर भी प्रभाव डालता है.

शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणु का दुनिया भर के सुअरो मे पाया जाना आम है. इस विषाणु का सूअरों से मनुष्य मे संचरण आम नहीं है और हमेशा ही यह विषाणु मानव इन्फ्लूएंजा का कारण नहीं बनता, अक्सर रक्त में इसके विरुद्ध सिर्फ प्रतिपिंडों (एंटीबॉडी) का उत्पादन ही होता है. यदि इसका संचरण, मानव इन्फ्लूएंजा का कारण बनता है, तब इसे ज़ूनोटिक शूकर इन्फ्लूएंजा कहा जाता है. जो व्यक्ति नियमित रूप से सूअरों के सम्पर्क में रहते है उन्हें इस फ्लू के संक्रमण का जोखिम अधिक होता है. यदि एक संक्रमित सुअर का मांस ठीक से पकाया जाये तो इसके सेवन से संक्रमण का कोई खतरा नहीं होता.

20वीं शताब्दी के मध्य मे, इन्फ्लूएंजा के उपप्रकारों की पहचान संभव हो गयी जिसके कारण, मानव मे इसके संचरण का सही निदान संभव हो पाया. तब से ऐसे केवल ५० संचरणों की पुष्टि की गई है. शूकर इन्फ्लूएंजा के यह उपभेद बिरले ही एक मानव से दूसरे मानव मे संचारित होते हैं. मानव में ज़ूनोटिक शूकर इन्फ्लूएंजा के लक्षण आम इन्फ्लूएंजा के लक्षणों के समान ही होते हैं, जैसे ठंड लगना, बुखार, गले में ख़राश, खाँसी, मांसपेशियों में दर्द, तेज सिर दर्द, कमजोरी और सामान्य बेचैनी.

Saturday 31 January 2015

पेट दर्द, बदहजमी हो तो होम्योपैथी को करें याद

पल्सेटिला नाईग्रीकैन्स: तली हुई या देर से पचने वाली चीजें खाकर होने वाला पेट दर्द। खट्टी डकार, जलन, खट्टा पानी मुंह में आना। पेट फूलना, जीभ फटी हुई या सफेद व सूखी, प्यास न लगना। यदि खाना खाने के एक घंटे बाद जलन खट्टी डकार, पेट में दर्द हो तो यह दवा बहुत अधिक फायदा देती है।
मेगफास फास्फोरिका: इस दवा का असर बहुत बार तुरंत ही हो जाता है, मरीज और चिकित्सक दोनों आष्चर्य करते रह जाते हैं। स्नायविक दर्दों में इसका प्रयोग बहुत होता है। काले व कमजोर मरीजों पर इसका असर अच्छा होता है। इसका दर्द दबाने, किसी गर्म वस्तु से सिकाई करने वह चलने फिरने से कम होता है। काफी बार दर्द की जगह भी बदलती रहती है तथा दर्द रुक-रुककर होता है। पेट में मरोड़, ऐंठन का दर्द, कई तरह के दर्दों में यह दवा काम कर जाती है।
कार्बो वेजिटेविलिस: इस दवा का सबसे बड़ा लक्षण है डकार आने पर पेट का अफारा कम हो जाता है। पेट में षूल जैसा दर्द। यह दर्द कई बार सोने पर अधिक होता है। हल्की चीजें भी उसे हजम नहीं होती। दूसरा लक्षण है मरीज चिढ़चिढ़ा हो जाता है। अधिक सेक्स-सुख भोगी, देर रात तक जगना, षराब आदि नषा करना भी इस दवा के लक्षण हैं। इन्हीं लक्षणों की एक और दवा है- नक्स।
सिनकोना/चायना: इसका सबसे उपयोगी लक्षण खाने के बाद गले में अटका सा महसूस होना, याना जो खाया वह गले,छाती में ही अटक गया हो। कुछ भी हजम न होना, यहां तक फल भी नुकसान करते हैं। जरा सा खाते ही पेट भरा सा मेहसूस होना। थोड़ा सा खाते ही खाने से उठ जाना है। इसका रोगी डकार लाने की कोषिष करता है, लेकिन डकार आने पर भी उसे कोई आराम नहीं आता। यह दवा लीवर की बहुत अच्छी दवा है। यह षरीर  की कमजोरी को दूर करती है, लीवर को ताकत देती है और उसकी सूजन कम करती है। भूख बढ़ाने में इस दवा का बहुत अच्छा काम है। इसकी सहयोगी दवा चेलीडोनियम है।
आईरिस वर्सिकालरः यह खराब पानी से उत्पन्न बीमारी की मुख्य दवा है। बद्हजमी, खट्टी डकार, गले, अन्न नली, छाती में जलन। सिरदर्द, खट्टी उल्टी जिससे दांत भी खट्टे हो जाते हैं, मुंह में लार आते रहना। पेट में जो दर्द होता है वह अम्ल की वजह से होता है। यदि उपरोक्त लक्षण रहने के साथ पेट में दर्द हो तो आईरिस लेकर जरूर देखें।
स्पाईजेलिया एन्थेलमिण्टिकाः  हृत्पिंड की तकलीफ की यह मुख्य दवा है। जोर से कलेजा धड़कना। हृत्पिंड यानी नाभि से ऊपर, छाती के नीचे बीचो-बीच दर्द होना। इस तकलीफ के साथ बद्हजमी तथा मुंह, गले में जलन में यह दवा ‘आईरिस वर्सि0’ के साथ बहुत अच्छी क्रिया करती है। इस दवा का एक लक्षण है- दर्द वाली जगह में सुईं चुभने सा महसूस होना. स्पर्श सहन न होना।
बेलाडोनाः पेट दर्द की जगह जरा भी नहीं छुई जाती। दर्द एक बार जोर से होता है फिर षुरु हो जाता है, हाथ लगाने दर्द बढ़ता है। कई बार दर्द रुक-रुककर होता है। बेचैनी होती है।
नेट्रम म्यूरः इस दवा का कमजोर, दुर्बल व्यक्तियों पर अच्छा असर होता है। जो अच्छा खाना भी खाते हैं। कब्ज होती हो, शौच सूखा होता है। मुंह का स्वाद खराब व जीभ सफेद होती है, भूख अधिक लगती है, लेकिन षरीर को खाया पिया लगता नहीं। यह भी गैस निकासी व पेट की गर्मी की अच्छी दवा है। यदि इसके साथ काली म्यूर ली जाए इसकी क्रिया बढ़ जाती है और कब्ज भी ठीक करती है.
नेट्रम सल्फ: बाईं तरफ लेटने पर दर्द बढ़ता है, बारिष के मौसम में जलन, गैस बनना अम्ल बनना, जीभ पर पीला लेप, आंखों ,त्वचा पर पीला-पन, पीलिये की षिकायत लगना, यकृत दोश इसके लक्षण है।
नेट्रम फास: बच्चों व बड़ों में अम्ल पिŸा की तकलीफ, बच्चों के पेट में कीड़े होने से दर्द आदि तकलीफ, सोते समय मुंह से लार बहना, दांत किटकिटाना, मुंह में पानी भर आना, गैस बनना, खाना खाने के बाद पेट में दर्द आदि।
चेलिडोनियम मेजसः यह दवा लीवर की बहुत अच्छी दवा है। दाहिने भाग पर इसकी अच्छी क्रिया होती है। चायना इसकी सहयोगी दवा है। मैली- राख जैसी जीभ। गर्म या अन्य कोई चीज खाने से दर्द घट जाना, खाली पेट दर्द होना इसके मुख्य लक्षण हैं। इसमें पेषाब पीला, कंधे के दाहिने हिस्से में दर्द होता, मुंह का स्वाद भी बिगड़ जाता है।
डायस्कोरिया विल्लोसा: पेट में किसी प्रकार का दर्द हो, लेकिन जगह बदलने वाला दर्द इसका विषेश लक्षण है। शौच वाली जगह में भी दर्द होता है। दर्द के साथ पतले दस्त हों तो यह अच्छा काम कर सकती है। पेट दर्द में इसके और लक्षण हैं पीछे की ओर झुकने से आराम होना, दर्द वाली जगह दबाने से सिकुड़ना, बढ़ना।
कार्डुअस मेरिऐनस: पत्थरी का दर्द हो या लीवर दोश के कारण दर्द, पीलिये के लक्षण दिखाई देते हों तो उसमें भी यह अच्छा कार्य करती है और तुरंत असर दिखाती है।
केमोमीला: इसका मुख्य लक्षण है- गुस्सा. पेट दर्द के साथ गुस्सा बहुत आ रहा हो, साथ ही बेचैनी, घबराहट हो तो यह दवा फायदा कर सकती है, विषेशकर बच्चों को।
एण्टीमक्रूड: बच्चा हाथ लगाते ही रोता है। जीभ एक-दम सफेद- इसी लक्षण में पेट व अन्य तकलीफों में यह दवा जल्द आराम करती है। पेट की गर्मी दूर करती है। मुंह में मीठा पानी भर आना। ज्यादा खाना खाने की वजह से दर्द होना। एक बार दर्द ठीक होकर पुनः दूसरी जगह होना। खट्टा खाने की इच्छा होना, लेकिन हजम न होना। खाई हुई चीज उल्टी हो जाना।
लाईकोपोडियम क्लैवेटमः पेट के अन्दर गों-गों की आवाज होना, ऊपर की तरफ से पेट में अफारा अधिक होना, पेट फूलना, पेट गड़ गड़ाना, खाना के बाद ही पेट दर्द होना। यकृत की जगह हल्का-हल्का लगातार दर्द होना, पेट में बाईं तरफ अधिक दर्द होना, तेज भूख लगने के बावजूद थोड़ा सा खाना खाते ही पेट भरा सा महसूस होना, खाना खाने के कुछ देर बाद ही भूख लग आना।
कोलोसिंथः पेट में मरो़ड की तरह दर्द। बहुत अधिक गुस्सा होने की वजह से कोई बीमारी होना, चाहे पेट दर्द होना, सामने की ओर झुकने या पैर, घुटने मोड़ने, दर्द वाली जगह दबाने से आराम होना।
लियाट्रिस स्पाइकेटा: हृत्पिंड, पेट, लीवर आदि कहीं भी सूजन हो, इससे बहुत जल्दी सूजन ठीक होती है। पेशाब ज्यादा होकर सूजन में आराम आता है। इसकी  क्यू पावर की दवा 12 से 15 बूंदे आधा कप पानी में सुबह-शाम लेनी चाहिए। हृत्पिंड के दर्द में भी जल्द आराम आता है। इस दवा के विषेश लक्षण नहीं है, षरीर के किसी भाग या पेट, लीवर में सूजन महसूस होने पर दी जा सकती है।
मैग्नेशिया म्यूरियोटिका: कड़ी कब्ज, सूखा मल जो टूट-टूटकर निकलता है.। डकार में प्याज या सड़े अण्डे की सी बदबू. यकृत सख्त जिसमे हाथ लगाने या चलने से दर्द बढ़ता   है। दाहिने तरफ सोने, खाना खाने से दर्द बढ़ना। गैस बनना और गोले की तरह ऊपर की तरफ चढ़ना। कब्ज हो तो 200 से ज्यादा पावर देनी चाहिए। मुंह से थूक आते रहना। पैरों में सूजन. जीभ पर दांत के निषान बनना तथा जीभ पर पीला मैल जमना।
एबिस नाईग्रा: यह दवा सबसे अधिक फायदा पेट रोगों में करती है। हृत्पिंड की तकलीफ में भी।  गैस बनना व खट्टी डकारें आना, बुजुर्गों को होने वाली पेट की तकलीफों में यह दवा फायदेमंद है। खाना खाने के बाद पेट में दर्द व कब्ज भी इस दवा का लक्षण है, लेकिन इस दवा का मुख्य लक्षण है जिसमें कि यह   अधिक फायदा करती है वे है पेट में गोला सा महसूस होना, जैसे अण्डा हो। यह गोला पेट में पड़े खाने का भी हो सकता है और गैस का भी। सुबह भूख नहीं लगती है, लेकिन दिन के समय व रात को अच्छी भूख लगती है, भूख की वजह से सो नहीं पाता।

विशेष

कैरिका पेपयाः यह दवा कच्चे पपीते से तैयार होती है। पपीता लीवर के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। जब खाने में कुछ भी हजम न हो रहा है, जो खाता है वही उल्ट देता हो, मुंह का स्वाद खराब हो, आंखें पीली, खून की कमी, कमजोरी, पानी के पीने से भी डरे तो भोजन करने के इस दवा की क्यू पावर की 10-12 बूंदें आधा कप पानी में खाना के बाद लेने से लाभ होता है।
नोट: उपरोक्त लेख केवल होम्योपैथी के प्रचार हेतु है. कृपया बिना डाॅक्टर की सलाह के दवा इस्तेमाल न करें. कोई भी दवा लेने के बाद विपरीत लक्षण होने पर पत्रिका की कोई जिम्मेवारी नहीं है.

Wednesday 28 January 2015

होम्योपैथी में है खांसी का सटीक इलाज


आमतौर पर विषेशज्ञ मानते हैं कि खांसी का एलोपैथी में खास अच्छा इलाज नहीं हैं. चिकित्सक आम तौर पर मीठे शरबत रूप में कई दवाओं का मिक्चर मरीज को देते हैं, जिसमें एल्कोहल काफी मात्रा में होती है, जिसकी वजह से गले का तनाव कम होता है और मरीज को कुछ राहत महसूस होती है- और काफी बार खांसी खुद ही ठीक हो जाती है. कई बार खांसी अपना विकराल रूप धारण करती है और टीबी, दमा, फेंफड़े कमजोर होने में तबदील हो जाती है. लेकिन होम्योपैथी में ऐसा नहीं है.
होम्योपैथी में खांसी का सटीक इलाज है, चाहे खांसी कोई भी हो, कैसी भी और किसी भी कारण से हो. बस आपको लक्षण देखने हैं और दवाई दे देनी या खा लेनी है. कुछ दवाओं का विवरण नीचे दिया जा रहा है.
एंटीम टार्ट: षरीर में कफ बनने की प्रवृत्ति , बलगम गले में फंसा लगना, छाती में कफ जमा महसूस होना, छाती में घड़-घड़ की आवाज आना, रात को खांसी बढ़ना, बलगम निकालने की कोषिष में काफी बलगम निकलना, खांसी के साथ उल्टी हो जाना इसके लक्षण हैं.
कार्बोवेज: गरमी से खांसी कम होना, गले में सुरसुरी होने की वजह से लगातार खांसने की इच्छा होना,खांसना. अचानक तेज खांसी उठना. कोई ठण्डी वस्तु खाने, पीने से, ठण्डी हवा से , षाम को खांसी बढ़ना. गले में खराष महसूस होना. बारिश, सर्दी के मौसम में तकलीफ बढ़ना.
हीपर सल्फ:  इसकी खांसी बदलती रहती है, सूखी हो सकती है, और बलगम वाली भी. हल्की सी ठण्ड लगते ही खांसी हो जाती है. यही इस दवा का प्रमुख लक्षण भी है. ढीली खांसी व काली खांसी में भी यह विशेष फायदा करती है. जिस समय ठण्डा मौसम होता है, उस समय अगर खांसी बढ़ती हो, तब भी यह फायदा पहुंचाती है. जैसे सुबह, रात को खांसी बढ़ना. लेकिन ध्यान रखें कि यदि स्पंजिया दे रहे हों, हीपर सल्फ नहीं देनी चाहिए, यदि हीपरसल्फ दे रहे हों, स्पंजिया नहीं देनी चाहिए.
फेरम फाॅस: रक्त संचय में अपनी क्रिया करती है. कोई तकलीफ एकाएक बढ़ जाना, किसी तकलीफ की प्रथम अवस्था में इसका अच्छा इस्तेमाल किया जाता है. यह दवा किसी भी प्रकार की खांसी- चाहे बलगमी हो या सुखी सब में फायदा करती है. कमजोर व्यक्तियों को ताकत देने में यह दवा काम में लाई जाती है. क्योंकि कुछ रोग कमजोरी, खून की कमी की वजह से लोगों को परेषान करते हैं. अतः खून में जोश पैदा करने का काम करती है.
नेट्रम सल्फ: जब मौसम में नमी अधिक होती है, चाहे मौसम सर्दी का हो या बारिश का या फिर और रात, उस समय खांसी बढ़ती है. खांसते-खांसते मरीज कलेजे पर हाथ रखता है, क्योंकि खांसने से कलेजे में दर्द बढ़ता है. दर्द बाईं तरफ होता है. दवा दमा रोगियों को फायदा करती है. क्योंकि दमा रोगियों की तकलीफ भी बारिष के मौसम व ठण्ड के मौसम में बढ़ती है.
संेगुनेरिया: रात में भयंकर सूखी खांसी, खांसी की वजह से मरीज सो नहीं सकता, परेषान होकर उठ जाना और बैठे रहना. लेकिन बैठने से तकलीफ कम न होना. सोने पर खांसी बढ़ना. दस्त के साथ खांसी. इसके और भी लक्षण है, महिलाओं को ऋतु गड़बड़ी की वजह से खांसी हुई हो तो उसमें यह फायदा कर सकती है. पेट में अम्ल बनने की वजह से खांसी होना, डकार आना. हर सर्दी के मौसम में खांसी होना- यह भी इस दवा के लक्षण है.
केल्केरिया फास: जब गले में बलगम फंस रहा हो, छाती में बलगम जमा हो तो यह उसे ढीला कर देती है. जब बच्चे खांस-खांसकर परेशान होते हैं, उस समय भी इससे फायदा होते देखा गया है. यह दवा बच्चों में कैल्षियम की कमी को भी दूर करती है. गले में बलगम फंसना, छाती में बाईं तरफ दर्द में भी यह दवा दी जाती है.
चायना: चायना का कमजोरी दूर करने भूख बढ़ाने में बहुत अच्छा काम है. खांसी हो, भूख कम लगती हो तो कोई भी दवा लेते समय यह दवा ले लेनी चाहिए. काफी बार लिवर की कमजोरी, षरीर की कमजोरी की वजह से बार-बार खांसी परेषान करती है, बार-बार निमोनिया हो जाता है, खासकर बच्चों को. यदि चायना, केल्केरिया फास, फेरम फाॅस कुछ दिन लगातार दी जाए तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है. इस दवा के खांसी में मुख्य लक्षण है- खांसते समय दिल धड़कने लगता है, एक साथ खांसी अचानक आती है कपड़े कसकर पहनने से भी खांसी होती है. इसकी खांसी अक्सर सूखी होती है.
बोरेक्स: बलगम में बदबू व खांसते समय दाहिनी तरफ सीने में दर्द तथा ऊपर की तरफ चढ़ने पर सांस फूलना इसके लक्षण है. यह दवा टीबी तक की बीमारी में काम लाई जाती है.
काली म्यूर: यह दवा फेंफड़ों में पानी जमना, निमोनिया, काली खांसी में काम आती है. एक लक्षण इसका मुख्य है- बलगम गाढ़ा, गोंद जैसा आना.
बेलाडोना: गले में दर्द के साथ खांसी, खांसी की वजह से बच्चे का रोना, कुत्ता खांसी, भयंकर परेशान कर देने वाली खांसी, खांसी का रात को बढ़ना. खांसी सूखी होना या काफी खांसी होने के बाद या कोषिष के बाद बलगम का ढेला सा निकलना. गले में कुछ फंसा सा अनुभव होना. बलगम निकलने के बाद खांसी में आराम होना, फिर बाद में बढ़ जाना.
स्पंजिया टोस्टा: यह दवा काली खांसी की बहुत ही अच्छी दवा मानी जाती है. जब सांस लेने में दिक्कत महसूस होती हो तो इसका प्रयोग अच्छा रहता है. गले में दर्द के साथ खांसी हो तो उसमें भी यह अच्छा काम करती है. यदि काली खांसी के साथ बुखार हो तो पहले एकोनाइट दे देनी चाहिए. इस दवा के और भी लक्षण हैं. कोई गरम चीज खाने से खांसी घटना और ठण्डी हवा, ठण्डा खान-पान, मीठा खाने बातचीत करने, गाने से खांसी बढ़ना, खांसते समय गले से सीटी बजने या लकड़ी चीरने की आवाज निकलना.
इपिकाक: इसका मुख्य लक्षण है, खांसी के साथ उल्टी हो जाना. उल्टी आने के बाद खांसी कुछ ठीक सी लगती है. सांस लेते समय घड़-घड़ जैसी आवाज आना, सीने में बलगम जमना आदि इसके लक्षण हैं. यह दवा काफी तरह की खांसियों में फायदा करती है, चाहे निमोनिया हो या दमा. कई बार ठण्ड लगकर बच्चों को खांसी हो जाती उसमें भी फायदा करती है. खांसते-खांसते मुंह नीला, आंख नीली हो जाना, दम अटकाने वाली खांसी छाती में बलगम जमना आदि इसके लक्षण हैं.
हायोसियामस नाइगर: सूखी खांसी. रात को खांसी अधिक होना, सोने पर और अधिक खांसी बढ़ जाना, मरीज परेशान होकर उठकर बैठ जाता है, लेकिन उसके बैठने से खांसी घट जाती है.
मैग्नेसिया म्यूर: इसका मुख्य लक्षण है कि इसकी खांसी सोने पर घट जाती है.
एसिड कार्ब: किसी को कैसी भी खांसी हो, किसी बीमारी के साथ हो, यह सब में फायदा कर सकती है. शोच, बलगम में बदबू हो तो काफी फायदा हो सकता है. इसमें लगातार खांसी आकर परेषान करती है.
कालचिकम औटमनेल: यह दवा तन्दुरुस्त लोगों को अधिक फायदा करती है. इसका प्रमुख लक्षण है, कोई तकलीफ या खांसी किसी गंद या रसोई की गंद से बढ़ना. इसमें तकलीफ हिलने से भी व सूर्य ढूबने के बाद बढ़ती.
चेलिडोनियम: दाहिने कन्धे में दर्द होना, तेजी से सांस छोड़ना, बलगम जोर लगाने से निकलना, वो भी छोटे से ढेले के रूप में. सीने में से बलगम की आवाज आना इस दवा के प्रमुख लक्षण है. लिवर दोश की वजह से हुई खांसी में बहुत बढि़या क्रिया दिखाती है. खांसते-खांसते चेहरा लाल हो जाता है. खसरा व काली खांसी के बाद हुई दूसरी खांसी में इससे फायदा होता है.
कास्टिकम: खांसी हर वक्त होते रहना. सांस छोड़ने व बातचीत करने से खांसी बढ़ना. खांसी के साथ पेषाब निकल जाना. ठण्डा पानी पीने खांसी घटना. छाती में दर्द तथा बलगम निकलने कोषिष में बलगम न निकाल सकना और बलगम अन्दर सटक लेना. रात में बलगम अधिक निकलना इस दवा के लक्षण है.
कोनियम मैकुलेटम: बद्हजमी के साथ खांसी. खांसी सूखी जो स्वर नली में उत्तेजना से उत्पन्न खांसी. इस दवा का प्रमुख लक्षण है, खांसी रात को ही अधिक बढ़ती है, जैसे कहीं से उड़कर आ गई हो. खांसी के साथ बलगम आता है तो मरीज उसे थूकने में असमर्थ होता है, इसलिए उसे सटक जाता है.
ब्रायोनिया एल्ब: खांसी के साथ दो-तीन छींक आना. सिर दर्द के साथ खांसी. हाथ से सीना दबाने पर खांसी घटना. सूखी खांसी. गले में कुटकुटाहट होकर खांसी होना यदि बलगम होता है बड़ी मुष्किल से निकलता है जिसपर खून के छींटे होते है या बलगम पीला होता है. खाना खाने के बाद या गरमी से खांसी बढ़ना इसके प्रमुख लक्षण हैं.
रियुमेक्स: खांसते समय पेषाब निकल जाना, गला अकड़ जाना, सूखी खांसी, मुंह में ठण्डी हवा जाने, षाम को, कमरा बदलने हवा के बदलाव की वजह से खांसी बढ़ना इसके प्रमुख लक्षण है. इस दवा का एक और लक्षण है गर्दन पर हाथ लगाने से खांसी अधिक होती है. गरमी से तथा मुंह ढकने से खांसी कम होती है.
एसिड फाॅस: जरा सी हवा लगते ही ठण्ड लग जाना. सोने के बाद, सुबह, शाम को खांसी अधिक होती है. खांसी पेट से आती सी महसूस होती है. बलगम का रंग पीला होता है, जिसका स्वाद नमकीन होता है.
कार्डुअस: लीवर के ठीक से काम न करने की वजह से होने वाली खांसी में इससे फायदा होता है. इसका एक और लक्षण है कि जब खांसी आती है तो उसके साथ कलेजे  के पास भी दर्द होता है.
कैप्सिकम: गले में मिर्ची डालने की सी जलन तथा खांसने में बदबू आना, खांस-खांसकर थक जाना तथा थोड़ा सा बलगम निकलना, बलगम निकलने पर आराम महसूस होना इसके प्रमुख लक्षण हैं. इन लक्षणों में दमा में यह दवा काम करती है.
स्कुइला: छींक आने व आंख से पानी टपकने साथ तेज खांसी. अपने आप बूंद-बूंद पेशाब निकलना. सीने में कुछ चुभोने की तरह दर्द होना.
बैराइटा कार्ब: बहुत बार टाॅंसिल बढ़ने, गले में दर्द के साथ खांसी हो जाती है. यह दवा टांसिल की बहुत अच्छी दवा है. यदि दूसरी दवाओं के साथ उपरोक्त तकलीफ के साथ हुई खांसी में इसकी 200 पावर की दवा हफ्ते में एक बार ले लेनी चाहिए या गोलियों बनाकर 4 गोली सुबह 4 गोली षाम को लेनी चाहिए. इस दवा का एक और लक्षण है कि जरा सी ठण्डी हवा लगते ही या ठण्डे पानी से हाथ मुंह धोने से खांसी जुकाम हो जाता है. जुकाम छींक वाला होता है.
काली फास: यह दवा षरीर में ताकत लाने व जीवनी षक्ति जगाने का काम करती है. जब काफी दवा देने के बाद भी आराम न आ रहा हो तो लक्षण अनुसार अन्य दवा देते हुए भी इसका प्रयोग कर सकते है, संभव है फायदा हो. दमा रोगियों को इससे काफी फायदा होते देखा गया है.
लाईको पोडियम: इसकी खांसी दिन रात उठती रहती है. खांसने की वजह से पेट में दर्द हो जाता है. गलें मेंसुरसुरी होकर खांसी होती है. बलगम युक्त खांसी में कई बार बलगम नहीं निकलता, निकलता है बहुत ज्यादा वो भी या तो हरा होता है या पीला पीब जैसा. कई बार एक दिन खांसी ठीक रहती है, किन्तु दूसरे दिन फिर खांसी परेषान करती है. ठण्डी चीजें खाने से खांसी बढ़ती है व षाम को खांसी अधिक होती है. खांसी ऐसी हो कि टीबी होने की संभावना हो तो यह दवा जरूर दें. यह जहां खांसी जल्दी ठी करेगी व टीबी होने की संभावना को भी खत्म करेगी.
नोट: उपरोक्त लेख केवल होम्योपैथी के प्रचार हेतु है. कृपया बिना डाॅक्टर की सलाह के दवा इस्तेमाल न करें. कोई भी दवा लेने के बाद विपरीत लक्षण होने पर पत्रिका की कोई जिम्मेवारी नहीं है.
ध्यान रखने योग्य कुछ दवाई
एकोनाइट नेपलेसःयह भी ध्यान रखें कि किसी समय खांसते-खांसते काफी परेषानी हो रही हो, बेचैनी घबराहट लगे, पानी की प्यास भी तो  एकोनाइट नेपलेस-30 की एक खुराक दे देनी चाहिए. यह किसी भी तकलीफ की बढ़ी हुई अवस्था, घबराहट, बेचैनी में बहुत अच्छा काम करती है तथा तकलीफ की तीव्रता कम कर देती है. यदि साथ ही तेज प्यास लग रही हो, बार-बार पानी पीना पड़ता हो तो इस दवा के फेल होने की संभावना बहुत मुष्किल ही है.
बेसलीनमः यह दवा टीबी से ग्रसित फेफड़े की पीब से तैयार होती है. जब खांसी पुरानी हो, टीबी के से लक्षण हों, पीला बलगम हों- कई बार खून के छींटे भी बलगम में हो सकते हैं. खांसते समय गले, छाती में दर्द हो तो हफ्ते में केवल 2 बंूद 200 पावर की दवा लें. इसकी कम पावर की दवा नहीं लेनी चाहिए, 200 या 200 से ऊपर पावर की दवा ले सकते हैं. 2-3 बार से अधिक बार भी यह नहीं लेनी चाहिए. बार-बार इस दवा का दोहारण भी ठीक नहीं.
लक्षण मिलने पर यह दवा बहुत तीव्र गति से अपनी क्रिया दिखाती है और लक्षणों को दूर करती है. बलगम का रंग बदलती है. यदि टीबी न हुई तो तो उसे रोकती है. यदि हो गई हो तो उसे बढ़ने से रोकती है. नियमित रूप से लेना लक्षण अनुसार दूसरी लेनी चाहिए. यदि किसी भी दवा से खांसी में आराम न आ रहा हो तो अन्य दवाओं को अपनी क्रिया करने का मार्ग प्रशस्त करती है.
सल्फरः खांसी बलगम वाली हो, सुबह बढ़ती है. छाती में से बलगम की घड़घड़ाहट जैसी आवाज आती हो, खांसकर बायें फेंफड़े में से तो इनमें से कोई लक्षण रहने पर कई दवाईंयां लक्षण मिलान करके देने के बावजूद आराम न आ रहा हो सुबह खाली पेट एक खुराक तीस पावर की जरूर देकर देखें, चाहे लिक्विड में दें चाहे गोलियों में बनाकर.

Sunday 25 January 2015

होम्योपैथी को करें याद जब बच्चा रोकर करे परेशान

बच्चा बोल न पाने की वजह से अपनी तकलीफ के संबंध में न तो बोलकर बता पाता न इशारे से बता पाता है. फलतः बच्चा रोने लगता है- काफी कोशिशों के बाद भी वह चुप नहीं होता. अभिभावक परेशान हो जाते हैं, पता नहीं क्या हो गया है बच्चे को! कई बार तो अभिभावक डाक्टर के पास न ले जाकर उसकी नजर उतारने लग जाते हैं.
एलोपैथी इलाज पद्धति के अनुसार भी जब तक तकलीफ का अंदाजा सही न हो तो दवाई देने के बाद भी बच्चे का रोना बन्द करना मुश्किल हो जाता है. लेकिन होम्योपैथी में रोते बच्चे को चुप कराने का समाधान संभव है, चाहे बच्चा किसी भी तकलीफ की वजह से रो रहा हो. चाहे चिढ़चिढ़ेपन की वजह से या किसी भय, बुरा सपना देखने, दांत निकलने के कारण बच्चा रोकर परेशान करता हो.
बच्चे की कोई विशेष तकलीफ जाने बिना, बिना कोई विशेष कारण जाने केवल बच्चे के रोने के लक्षण के अनुसार दवाई देकर बच्चे का रोना बन्द किया जा सकता है, इससे बच्चे के अन्दर कोई तकलीफ हुई हो, वह भी ठीक हो सकती है.
बच्चा सोकर अचानक उठे और बुरी तरह से रोने लग जाए, ऐसा लगे जैसे बच्चा भय, या बुरा सपना देखकर उठा हो  रेस्क्यू-30 दें. यह भय को दूर करने की बहुत अच्छी दवा है. कई बार रात को बच्चे को होने वाली कई तकलीफों में फायदा दे देती है, जब डाॅक्टर उपलब्ध होना कठिन हो जाता है. रात को बच्चे की कोई तकलीफ समझ न आए तो एक बार इस दवा को देकर जरूर देखें.
बच्चा रोकर परेशान करे. सिर दर्द, पेट दर्द का अंदेशा हो. पेट में भारी-पन महसूस हो तो
मेगफास-30, पल्सटिला-30
देकर देखें. यदि रात का वक्त हो, उपरोक्त दवाओं से आराम न महसूस हो तो इन दवाओं के बाद एक बार ओपियम-30 देकर देखें. ओपियम केवल रात के समय दें. ओपियम दर्द को कम करते हुए नींद लाने का काम करती है.
मूत्रा करने से पहले बच्चे का रोना, बार-बार पेशाब करना, निद्रा में अचानक चिल्ला उठना
बोरेक्स-30, रेस्क्यू-30
दिन के समय शांत रहना, रात को रोना, सोकर अचानक उठकर रोना, सिर घुमाना ऐसा लगना जैसे डर गया हो, मल में बदबू
जैलापा-30, जिंकम मेट-30
साईलेसिया-30
बच्चा हाथ लगाने, उसकी तरफ देखने से ही रोना, केवल गोद में घुमाने से चुप रहना, जीभ सफेद
एण्टीम क्रूड-30, सीना-30
केल्केरिया फाॅस-30
बच्चा छोटा हो या बड़ा, काफी बार बिना किसी खास तकलीफ के पूरे दिन रात रोते रहना, जरा-जरा सी बात पर रोना, गुस्सा होना, जिद्द करना, कोई चीज देने पर चुप होना या उसे भी फैंक देना, चुप करने से और अधिक रोना
कैमोमीला-30, केल्केरिया फास-30
नेट्रम म्यूर-30
दांत निकलते समय बच्चा चिढ़चिढ़ा हो गया हो, रोता हो
केल्केरिया फाॅस-30 नेट्रम फास-30, एंटीम क्रूड-30
बच्चे के अन्दर मिट्टी खाने के लक्षण हों या सलेटी आदि खाता हो
केल्केरिया फास-30, नेट्रम फाॅस-30, ऐल्यूमीना-30
गुस्से में बच्चे में एंठ, अकड़ जाने का भाव होने पर इग्नेशियाऐमेरा-30, कैमोमीला-30

बच्चे के रोने में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के संक्षिप्त लक्षण

कैमोमीलाः चिढ़चिढ़ा बच्चा. बच्चे का गुस्से में भरे रहना जैसे कुछ मांग रहा हो, लेकिन कुछ देते ही उसे फैंक देना. बहुत अधिक गुस्सा, जिद्द करना व हर वक्त रें रें करते रहना. दांत निकलते समय बच्चों को नींद आने के समय भी यह अच्छा काम करती है. बच्चे का नींद में चैंकना, बेचैन रहना, हाथ-पैर मारना.
कैल्केरिया फाॅसः यह बच्चों में केल्षीयम की कमी को दूर करने की प्रमुख दवाई है. केल्षियम की कमी की वजह से होने वाले रोगों में यह अपनी क्रिया करती है, तथा दांत निकलते समय बच्चों में होने वाले रोगों में यह फायदेमंद है. यदि बच्चों को यह दवाई नियमित  दी जाए तो उनके दांत जल्दी से खराब नहीं होते, दांतों की बीमारी से बच्चे बचे रहते हैं.
एण्टिमोनियम क्रूडः बच्चे की जीभ सफेद. बच्चा गुस्सेबाज, चिड़चिड़ा. उसकी तरफ देखने, उससे हाथ लगाने से रोना. मल में सफेद-पन.
सीनाः बार-बार नाक खोंटना, खुजाना. भूख अधिक. पेट में कीड़े होने के लक्षण. बच्चे का रो-रोकर हाथ-पैर पटकना. शरीर पर हाथ लगाने से और अधिक रोना. केवल गोद में रहना. रात को बेचैन रहना. नींद से उठकर रोने लगना. पेशाब गंदा. खाना खाने के कुछ दूर बाद ही खाना मांगना, भूख अधिक.
नेट्रम म्यूरः बहुत अधिक भूख लगना, हमेशा खाना मांगना, ज्यादा खाने के बाद भी शरीर न पनपना. सांत्वना या चुप करने पर और अधिक रोना, चिढ़ना. 
साइलिसियाः बच्चे को कब्ज. मल में बदबू. बच्चे का पेट मोटा, सिर बड़ा परन्तु पैर दुबले-पतले. बदबूदार पसीना. बच्चा जिद्दी तथा हमेशा रोते रहना. सिर में पसीना आता है.
नैट्रम फासः इसका  प्रमुख लक्षण बच्चे का मिट्टी खाना है. बच्चा दूध उल्टता है तथा खट्टी बदबू वाले दस्त करता है. दस्त हरे भी हो सकते हैं. बच्चे सोते समय दांत किड़किड़ाता है.
ऐल्यूमीनाः वो बच्चे जो मां के दूध पर न पलकर ऊपरी दूध पर पल रहे हों, कमजोर, गुस्से बाज व चिड़चिड़े. बच्चे के जो हाथ आता है वही खा जाता है चाहे चाक हो या कोयला, मिट्टी, नमक. मल बहुत सख्त तथा गांठ-गांठ सा तथा आंव युक्त. मल करने के लिए बच्चा बहुत जोर लगाता है. नरम मल के लिए भी जोर लगाता है.
इग्नेशिया ऐमेराः इसका सबसे बड़ा लक्षण है बच्चे को डांटने पर, बच्चे को अधिक गुस्सा आने पर उसे अकड़न, ऐंठन होना या अन्य कोई तकलीफ होना.
जैलापाः बच्चे का दिन-रात रोना कई बार बच्चा दिन में हंसता, खेलता है लेकिन रात होते ही तेज-तेज रोने लगता है. दस्त लगे रहने पर बच्चे के रोने पर यह दवा और भी अच्छा काम करती है.
जिंकम मेटः नींद से जगकर बच्चे का बुरी तरह रोने लगना, सिर पटकना जैसे डर गया हो ऐसा भाव प्रकट करना.
बोरेक्सः जरा सी बात पर डर जाना. नींद की अवस्था में अचानक चिल्लाकर उठ जाना. पेशाब गर्म, पेशाब करते समय बच्चे का रोना. ऊंचाई से डरना. यहां तक कि कुर्सी, चारपाई पर से भी उसे डर लगता है, गोद में लेकर उसे उतारना पड़ता है.
रेस्क्यूः यह मुख्यतः भय, बेहोशी को दूर करने वाली दवा है. चाहे भय, बेहोशी किसी भी वजह से हो. भय, बेहोशी दुर्घटना की वजह से भी हो सकती है या अन्य कारण से. आप इसका एक बार इस्तेमाल करके देखें, जरूर फायदा होगा. बच्चा अगर बिना किसी कारण या आपको कोई कारण समझ न आ रहा हो तो यह दवा देकर बच्चे को देकर सुला सकते हैं.

Saturday 24 January 2015

जिस बीमारी का इलाज एलोपैथी में नहीं, होमियोपैथी में है

यह तो बहुत से लोगों को कि काफी बीमारियों का इलाज एलोपैथी चिकित्सा पद्धति में नहीं है, बहुत से डॉक्टर प्रयोग करने के सिवा कुछ नहीं करते जबकि होमियोपैथी से वह ठीक हो सकते थे। भारत अभी वो सोच पनप भी नहीं पाई है कि अगर किसी चिकित्सा पद्धति से इलाज संभव नहीं है तो डॉक्टर दूसरी पद्धति से ईलाज करने की सलाह मरीज को दे सके । यह कमी सभी पद्धति के चिकित्सकों में है। हालाँकि ऐसी सोच चिकित्सकों में पनप जाए तो मरीजों का बहुत भला हो. जैसे संकट / एमरजैंसी में एलोपैथी चिकित्सा में ग्लूकोज, इंजेक्शन के मरीज को बहुत जल्दी और अधिक आराम पहुँचाया जा सकता , मौत के मुंह से बचाया जा सकता है। उसके बाद बीमारी को ख़त्म करने के लिए होम्योपैथी का
इस्तेमाल किया जा सकता है।
It's a lot of people a lot of diseases that allopathic treatment Ciktsa is not in the system, many doctors do not do anything except to use Homeopathy when he could be fine। India right now they could not even think of building up a system of medicine that if treatment is not possible with the other method of treatment to the doctor's advice to give to the patient। The shortage of doctors in the system। However, the building up in the doctors think that patients are very good। Such as crisis / Mrjansi in allopathic medicine in glucose, injection of the patient more comfortable very quickly and can be delivered, saved from death can be. After the illness of the end for homeopathy can be used.

वंश दोषों को दूर करने में कारगर है होमियोपेथी

बहुत सी तकलीफें हमें धातुगत दोषों के कारण उत्पन्न होतीं हैं.हमारे जन्म से पहले परिवार में किसी को हुई कोई खतरनाक बीमारी के कारण वन्शागुत आधार पर मिलती है। यह जरूरी नहीं है की, पूर्वज को जो तकलीफ हुई हो वही आपको हो। कोई अन्य बीमारी ठीक होने में रोड़ा भी बन सकती है.
अनेक बीमारी वंश दोष के कारण हो सकती है, जैसे फोड़े-फुंसी,सुजाक , दमा, टीबी आदि। फोड़े-फुंसी,सुजाक , खुजली के दब जाने के कारण बहुत सी बीमारियाँ हो जाती हैं.कोई भी तकलीफ हो सकती है -जैसे दमा, टीबी, दिल की बीमारियाँ। शरीर, जोड़ों में बाय का दर्द।
फोड़े-फुंसी,सुजाक , टीबी आदि तकलीफें जहाँ बहुत गर्म एलोपैथी दवा , इंजेक्शनों के जरिये जहाँ दबा दी या सुखा दी जाती है, वहीं होमियोपेथी लक्षणों को दूर कर बीमारी जड़ से ख़त्म कर इनके दब जाने
से होने वाली दूसरी बीमारियों के होने संभावना ख़त्म देती है. होमियोपेथी से इलाज बच्चे होने से पहले करा लिया जाए तो वह वंश दोष, बीमारी आगे की पीढी में नहीं जाएगी। होमियोपेथी चिकित्सा पद्धति के अनुसार खानदान में चाहे पहले की पीढी में किसी को सुजाक , टीबी, दमा, आदि रोग हुए हों, तो आने वाली पीढी में यह रोग होने की संभावना रहती है - होमियोपेथी से इस संभावना को रोका जा सकता है। अच्छे चिकित्सक परिवार में हुई बीमारियों के इतिहास को ध्यान में रखते हुए इलाज करते हैं - फलतः इससे बीमारी ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है या ये दवाएं सोरा विष को समाप्त कर अन्य ली जाने वाली दवाओं के लिए काम का मार्ग प्रशस्त करती है। सल्फर , सिफेलियनियम , मैडोरिनम, सोरिनमआदि ढेरों दवाएं खानदानी दोषों को दूर करने का काम करतीं हैं।
मैडोरिनम: यह वंश की वजह से होने वाली बीमारियों में काम आने वाली नोसोडस दवा है। नोसोडस यानी किसी बीमारी के कीटाणु या पीब से तैयार दवा। यह दवा उस किसी भी बीमारी में काम आ सकती है, जो परिवार में किसी को हुए सुजाक (गुप्त रोग ) के दब जाने की या होने की वजह से वर्तमान की पीढी में कोई बीमारी हुई हो। यह दवा वात रोग -कंधे, कूल्हे, घुटने आदि सभी जोडों में दर्द, चलने, फिरने वाला दर्द में अधिक फायदा करती है. क्योंकि कहा जाता है , वात रोग होने का प्रमुख वजह यह भी सम्भव है की परिवार के किसी पूर्व पुरूष -पिता,दादा आदि को सुजाक (गुप्त रोग) हुआ हो, और उनके सुजाक का विष वर्तमान पीढी में आ गया हो। साधारण वात रोग में भी यह फायदा करती है.
कोई भी बीमारी हो, लेकिन खानदान में किसी को सुजाक किसी को सुजाक हुआ हो तो यह दवा कोई भी बीमारी ठीक होने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है, लेकिन किसी नै बीमारी में इसका जल्दी से इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ज्यादातर पुराणी तकलीफ में ही दी जाती है, उसमें भी कई चुनी हुई काफी दवाई देने के बाद भी जब कोई फायदा नहीं हो रहा हो, दी जाती है।
कई बार पति के कारण सुजाक का विष स्त्री के शरीर में पहुँच जाता है और कोई बीमारी होने पर ठीक होने का नाम नहीं लेती - तब भी इस दवा का इस्तेमाल किया जा सकता है।इस दवा के प्रमुख लक्षण हैं:- बुखार में हाथ तथा पैर ठंडे रहने, गर्दन, मुंह गर्म व सिर में दर्द के साथ जलन, दबाव महसूस होना. पेशाब करते समय जलन तथा दर्द व वात का किसी प्रकार का दर्द.
इस दवा की पावर 200या उससे ऊपर इस्तेमाल करनी चाहिए. परन्तु यह दवा किसी अनुभवी चिकित्सक की कई बिना नहीं कई जानी चाहिए।
सोरिनम: खाज-खुजली की पीब से तैयार यह दवा सोरा विष की वजह से होने वाली सभी सभी बीमारियों में फायदा करती है. कई बार खाज-खुजली के दब जाने की वजह से होने वाली खांसी, जुकाम, बुखार आदि तकलीफ में बहुत बढ़िया काम आती है. शरीर में कोई भी बीमारी हो,लेकिन लक्षण अनुसार कई दवाई देने के बाद भी आराम नहीं आ रहा हो तो यह दवा अन्य दवाओं की क्रिया करने का मार्ग प्रशस्त करती है।
कोई नई बीमारी, जिसका कोई विशेष कारण नजर न आए तो तब भी यह दवा दी जा सकती है. इस दवा का एक लक्षण और है, भूख काम लगना या अधिक भूख लगना- रत को जागकर भी खाना खाना. बार-बार सर्दी सताती हो, जरा सी ठण्ड लगते ही सर्दी लग जाती हो, यहाँ तक कि गरमी के मौसम में भी सर्दी लग जाना- तब भी इस दवा का इस्तेमाल करना चाहिए.नहाने के बाद भी शरीर कि बदबू न मिटना. मल, पसीना, पेशाब, स्त्रियों के मासिक धर्म, सफ़ेद पानी आदि में बदबू. थोड़ी सी गर्मी से भी खुजली बढ़ जाना. इतनी खुजली कि खुजली वाली जगह भी घाव हो जाते हैं. भोजन अधिक खाने के बावजूद शरीर में ताकत न आना . डकार में सड़े अंडे की सी बदबू आना. त्वचा पर भूसी जैसा चर्म रोग हो- जो सर्दी में बढ़ता है, उसमें भी यह फायदा करती है।
सिफेलियनियम: उपदंश के घाव के विष से बनने वाली यह नोसोडस दवा तब काम आती है, जब दूसरी दवाओं से स्थाई फायदा नहीं होता, यानी बामारी ठीक होकर फिर प्रकट हो जाती है. इसकी तकलीफें रात को बढती हैं. मुंह का दाहिना हिस्सा पक्षाघात से ग्रस्त होना, मुंह का कोई घाव, दांतों में कोई तकलीफ, सिर में गांठें होना व स्नायु सिर दर्द में यह दवाई फायदा करती है। यह दवा लेने पर कोई बीमारी तीव्र गति से बढा सकती है, इसलिए बिना डाक्टर की देखरेख में न लें, पूरी जानकरी व अनुभव के बाद इस दवा का प्रयोग करें.
बैसलीनम: यह नोसोडस दवा टीबी से ग्रस्त फेंफड़ों की पीब से तैयार की जाती है तथा अधिक पुरानी खांसी में इस्तेमाल की जाती है, जब काफी दवाई देने के बाद भी खांसी में आराम न हो रहा हो.टीबी हो या टीबी बनने के से लक्षण हों. परिवार या खानदान में किसी को टीबी रही हो या हो. लक्षण व लेने के तरीके के बारे में जानने के लिए खांसी वाला अध्याय देखें।
स्टैफिसग्रिया: बच्चे के दांत जल्दी सड़ गल जाते हैं, काले पड़ जाते हैं, मसूड़े फूलते हैं, तब इस दवा का इस्तेमाल करना चाहिए। हो सकता है कि परिवार के किसी पुरुष को सुजाक(गुप्त रोग) हो, इस वजह से बच्चा इन तकलीफों को भोग रहा हो तो यह दवा काम कर जाती है तथा उस विष को ख़त्म कर सकती है जिससे दूसरी दवा का काम करना आसान हो जाता है।
सल्फर: यह सोरा दोष नाशक दवा है.यह गंधक से तैयार होती है. त्वचा रोग की मुख्य दवा होने के कारण यह काफी बार रामबाण का काम कर जाती है. जब किसी बीमारी में काफी दवाएं देने के बावजूद फायदा न होने पर ज्यादातर चिकित्सक इन्हीं लक्षणों में काम आने वाली अन्य दवाओं की अपेक्षा इसी दवा को देतें हैं। यह दवा अन्य दवाओं को क्रिया करने का मार्ग प्रशस्त करती है, जब यह दवा भी काम नहीं करती, जब अन्य दवाएं दी जातीं हैं. फिर भी हम कहेंगे कि लक्षण मिलान जरूरी है.
इस दवा के प्रमुख लक्षण हैं - अक्सर सर्दी लग जाना. सर्दी लगने के शिकार इसके रोगी को सोरिनम दवा के विपरीत नहाना पसंद नहीं करता, क्योंकि उसको बीमार होने का डर रहता है. सर्दी लग जाने के बावजूद उसे ठंडक अच्छी लगती है. यह दवा शरीर से कमजोर व बुद्धिमान तथा जिनकी चलने की गति तेज होती है, उन पर अच्छा काम करती है। शरीर से बदबू आती है- जो नहाने के बाद भी नहीं जाती. पैर, हाथ, तलवे में जलन होती है. पैर में ऐंठन होती है. रात को नींद नहीं आती, दिन में नींद की झपकी आती रहती है. बच्चे को बहुत भूख लगती है, जो सामने आता है उसे खा जाता है. हमेशा कुछ न कुछ खाने को मांगता रहता है. त्वचा रोग में फुंसी हो सकती है, सूखी खुजली भी.खुजली सूखी होती है,लेकिन खुजलाने में आनंद आता है- बाद में जलन होती है. इसकी खुजली का लक्षण बवासीर व मस्सों में भी है.
पेशाब व शोच करने के की जगह त्वचा रोग की वजह से लाल हो जाती है. शोच करते समय दर्द, दर्द के कारण बच्चे को शोच करने में डर लगता है. बुखार में रोगी ठंडक चाहता है, मुंह सूखा रहने की वजह से रोगी बार-बार पानी पीता है- मुंह, गले का सूखापन दूर करने के लिए. जीभ के किनारे लाल होते हैं , जीभ के बीच में सफेद निशान होता है.मानसिक लक्षण में मरीज बड़ा ही चिड़चिडा होता है, जरा सी बात ही से नाराज हो जाता है.किसी के उपदेश तो सुनना ही नहीं चाहता. कोई भी तकलीफ हो, आधी रात के बाद अधिक परेशान करती है. खांसी बलगम वाली होती है, जो सुबह अधिक बढती है.बलगम की वजह से छाती में घडघडाहट की आवाज आती है. इसका एक और उपयुक्त लक्षण है- मरीज की तकलीफ खड़े होने व बिस्तर से तकलीफ बढती है.कमर में इतना अधिक दर्द होता है कि उठने-बैठने में भी परेशानी होती है.दवा के लक्षण मिलने पर यह दवा आरम्भ में ली जा सकती है.