Thursday 19 February 2015

होम्योपैथी में भी है स्वाइन फ्लू का इलाज संभव

* स्वाइन फ्लू बीमारी इन्फ्लूएनजा (एच1एन1) वायरस से होती है  * यह वायरस मनुष्य से ड्रोपलेट इन्फेक्शन से फैलता है. खांसने-छीकने पर एक से चार मीटर की दूरी वाले व्यक्ति प्रभावित होते हैं * रोगी के शरीर में वायरस 1 से 7 दिन में फैल जाता है * 24 से 48 घंटे में इलाज मिलने पर खतरे को टाला जा सकता है
दै. भास्कर से साभार!
.स्वाइन फ्लू इन दिनों अखबारों से लेकर टीवी समाचार चैनलों में छाया हुआ है. इन दिनों स्वाइन फ्लू के बारे में इस तरह के हालात बन गए हैं कि कहना पड़ रहा है, " मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की।" लेकिन आप स्वाइन फ्लू बीमारी से डरें नहीं, जागरूक रहें. सतर्क रहने पर स्वाइन फ्लू फैलता भी नहीं है.
जैसे कि पिछली पोस्टों में बताया जा चुका है कि होम्योपैथी चिकित्सा से इलाज में मुख्यत बीमारी से शरीर में उत्पन्न  लक्षण ही महत्वपूर्ण है. मानसिक लक्षण भी देखे जाते हैं, उन्हीं के आधार पर इलाज होता है. शारीरिक, मानसिक लक्षणों के आधार पर कठिन, जटिल बीमारियों का इलाज होम्योपैथी से संभव है.
स्वाइल फ्लू के  आम लक्षण: जुकाम, खांसी, नाक बंद होना, सिर में दर्द, थकावट महसूस होना, गले में खराश, शरीर में दर्द, ठंड लगना, जी मिचलाना, उल्टी होना और दस्त भी हो सकते है. कुछ लोगों में श्‍वांस लेने में तकलीफ भी हो सकती है. स्वाइन फ्लू के ज्यादातर मरीजों में थकावट के लक्षण पाए जाते हैं. स्वाइन फ्लू के प्राथमिक लक्षण दिखने में एक से चार दिन लग सकते हैं. इन सभी लक्षणों में इपिका, जेल्सियम, एकोनाइट, एलिएम सीमा, फेरमफास, रसटक्स, चायना, बेलाडोना, आर्सेनिक-एल,  टयूबर कुलीनम आदि दवाइयां काम कर सकती हैं. लेकिन यहां दवाओं के बारे में केवल जानकारी के लिए बताया जा रहा है. यदि स्वाइल फ्लू के लक्षण लग रहे हैं तो किसी अच्छे होम्योपैथी चिकित्सक की सलाह से दवा लें. जिन लोगों में रोग प्रतिरोध क्षमता कम है तो वह दो तीन महीने चायना, नेट्रम म्यूर, फेरम फास 30 पावर में लेकर देख सकते हैं. होम्योपैथी दवाएं एलोपैथी दवाओं के साथ भी ले सकते हैं. लेकिन दोनों दवाइयों के बीच अंतर कम से कम एक घंटे का होना चाहिए, दूसरा होम्योपैथी दवा लेने से पहले एलोपैथी दवा लेनी चाहिए. होम्योपैथी दवा एलोपैथी दवा से पहले लेंगे तो एलोपैथी दवा होम्योपैथी को क्रिया नहीं करने देगी.

राजस्थान संस्करण के दै. भास्कर  में प्रकाशित यह रिपोर्ट यहां दी जा रही है-
खंडवा. स्वाइन फ्लू होने पर तो एलोपैथी के साथ ही होम्योपैथ और आयुर्वेद में भी इसका आसान इलाज है. जरूरत समय से रोग को पहचानने की है.
जिला अस्पताल में एलोपैथ के साथ होम्योपैथ और आयुर्वेद में स्वाइन फ्लू का इलाज मिलता है. आयुर्वेद और होम्योपैथिक क्लीनिक में सर्दी-जुकाम और गले में खराश के मरीजों का इलाज हो रहा है. रोजाना 15 से 20 मरीज क्लीनिक में आ रहे हैं.
होम्योपैथिक डॉ. एसएन वर्मा मरीजों को प्रारंभिक लक्षण के आधार पर दवाएं दे रहे हैं. ज्यादा परेशानी होने पर स्वाइन फ्लू जांच के बाद अन्य दवाएं भी देंगे.
डॉ. वर्मा ने बताया जेलसीमीयम, आर्सेनिक-एल, एलियम सीपा, टयूबर कुलीनम दवा मरीज को दी जाती है. होम्योपैथिक क्लीनिक में दवाओं का स्टॉक है. आयुर्वेदिक डॉ. वीआर वैश्य ने बताया क्लीनिक में त्रिभुवन कीर्ति रस, श्वास-कास चिंतामणि रस, श्रृंग भस्म, सीतोपलादी के साथ कफ की दवाएं हैं.

निजी डॉक्टरों को दिया प्रशिक्षण: निजी नर्सिंग होम एवं डॉक्टरों को जिला अस्पताल में रविवार को स्वाइन फ्लू के इलाज का प्रशिक्षण हुआ. सीएमएचओ डॉ.आरसी पनिका, सीएम
डॉ.ओपी जुगतावत, जिला नोडल अधिकारी योगेश शर्मा ने डॉक्टरों को इलाज और केटेगरी के बारे में जानकारी दी.

सी कटेगरी मरीज रैफर : निजी नर्सिंग होम में भर्ती मरीज स्वाइन फ्लू की सी कटेगरी में संदिग्ध मिला. पुनासा निवासी मरीज निजी नर्सिंग होम में 4 दिन से भर्ती था. रविवार को जिला अस्पताल और यहां से स्वाब लेकर इंदौर रैफर किया. नोडल अधिकारी डॉ. संतोष श्रीवास्तव ने बताया दो संदिग्ध भर्ती हैं. सी कटेगरी में सस्पेक्टेड मरीज का सैंपल लेकर इंदौर भेजा है.

आयुर्वेद में यह उपाय :-
- 4-5 तुलसी के पत्ते, 5 ग्राम अदरक, चुटकीभर कालीमिर्च पावडर और हल्दी को एक कप पानी में उबालकर दिन में दो-तीन बार पीएं.
- गिलोय बेल की डंडी को पानी में उबालें. छानकर पीएं.
- आधा चम्मच आंवला पावडर को आधा कप पानी में मिलाकर दिन में दो-तीन बार पीएं.

ये है स्वाइन फ्लू

ये है स्वाइन फ्लू

एच१एन१ स्पैनिश फ्लु से आया, जो 1918 और १९१९ 1919 के दौरान फैली एक महामारी थी जिससे लगभग ५ करोड़ लोग मारे गए थे. जो वायरस स्पैनिश फ्लु से आया वह सूअरों में विद्यमान रहा. इसका संचलन २० वीं सदी के दौरान मनुष्यों में भी हुआ, यद्यपि यह वर्ष के उस समय होता है जब प्रतिवर्ष होने वाली महामारियाँ फैलती हैं, जिससे 'सामान्य' इंफ्लुएंजा और शूकर इंफ्लुएंजा में अंतर कर पाना कठिन है. हालांकि सुअरों से मनुष्यों में होने वाले संक्रमण के मामले बहुत विरल हैं और २००५ के बाद से अमेरिका में १२ मामले पाए गए हैं.
– स्वाइन फ्लू बीमारी इन्फ्लूएनजा (एच1एन1) वायरस से होती है
– यह वायरस मनुष्य से ड्रोपलेट इन्फेक्शन से फैलता है. खांसने-छीकने पर एक से चार मीटर की दूरी वाले व्यक्ति प्रभावित होते हैं
– रोगी के शरीर में वायरस 1 से 7 दिन में फैल जाता है
– 24 से 48 घंटे में इलाज मिलने पर खतरे को टाला जा सकता है

स्वाइन फ्लू के लक्षण आम बीमारियों की तरह ही होते हैं लेकिन डॉक्टरों ने इसके पहचान के लिए कुछ लक्षण निर्धारित किए हैं. डॉक्टर स्वाइन फ्लू को एक आम बीमारी की तरह ही मान रहे हैं बशर्ते समय से इसका ईलाज जरूरी है. कैसे फैलते हैं इसके वाइरसः यह वाइरस पीड़ित व्यक्ति के छींकने, खांसने, ‌हाथ मिलाने और गले मिलने से फैलते हैं. वहीं स्वाइन फ्लू का वाइरस स्टील प्लास्टिक में 24 से 48 घंटों तक, कपड़ों में 8 से 12 घंटों तक, टिश्यू पेपर में 15 मिनट तक और हाथों में 30 मिनट तक सक्रिय रहता है. शुरुआती लक्षण: लगातार नाक बहना, मांसपे‌शियों दर्द या अकड़न महसूस होना, सिर में तेज दर्द, लगातार खांसी आना, उनींदा रहना, थकान महसूस होना, बुखार होना और दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना आदि.

आम लक्षण: जुकाम, खांसी, नाक बंद होना, सिर में दर्द, थकावट महसूस होना, गले में खराश, शरीर में दर्द, ठंड लगना, ‌जी मिचलाना, उल्टी होना और दस्त भी हो सकती है. कुछ लोगों में श्‍वांस लेने में तकलीफ भी हो सकती है. स्वाइन फ्लू के ज्यादातर मरीजों में थकावट के लक्षण पाए जाते हैं. स्वाइन फ्लू के प्राथमिक लक्षण दिखने में एक से चार दिन लग सकते हैं.


एच१एन१ स्पैनिश फ्लु से आया, जो 1918 और 1919 के दौरान फैली एक महामारी थी जिससे लगभग 5 करोड़ लोग मारे गए थे. जो वायरस स्पैनिश फ्लु से आया वह सूअरों में विद्यमान रहा. इसका संचलन २० वीं सदी के दौरान मनुष्यों में भी हुआ, यद्यपि यह वर्ष के उस समय होता है जब प्रतिवर्ष होने वाली महामारियाँ फैलती हैं, जिससे 'सामान्य' इंफ्लुएंजा और शूकर इंफ्लुएंजा में अंतर कर पाना कठिन है. हालांकि सुअरों से मनुष्यों में होने वाले संक्रमण के मामले बहुत विरल हैं और 2005 के बाद से अमेरिका में 12 मामले पाए गए हैं.

शूकर इन्फ्लूएंजा, जिसे एच1एन1 या स्वाइन फ्लू भी कहते हैं, विभिन्न शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणुओं मे से किसी एक के द्वारा फैलाया गया संक्रमण है. शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणु (SIV-एस.आई.वी), इन्फ्लूएंजा कुल के विषाणुओं का वह कोई भी उपभेद है, जो कि सूअरों की स्थानिकमारी के लिए उत्तरदायी है.[2] 2009 तक ज्ञात एस.आई.वी उपभेदों में इन्फ्लूएंजा सी और इन्फ्लूएंजा ए के उपप्रकार एच1एन1 (H1N1), एच1एन2 (H1N2), एच3एन1 (H3N1), एच3एन2 (H3N2) और एच2एन3 (H2N3) शामिल हैं. इस प्रकार का इन्फ्लूएंजा मनुष्यों और पक्षियों पर भी प्रभाव डालता है.

शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणु का दुनिया भर के सुअरो मे पाया जाना आम है. इस विषाणु का सूअरों से मनुष्य मे संचरण आम नहीं है और हमेशा ही यह विषाणु मानव इन्फ्लूएंजा का कारण नहीं बनता, अक्सर रक्त में इसके विरुद्ध सिर्फ प्रतिपिंडों (एंटीबॉडी) का उत्पादन ही होता है. यदि इसका संचरण, मानव इन्फ्लूएंजा का कारण बनता है, तब इसे ज़ूनोटिक शूकर इन्फ्लूएंजा कहा जाता है. जो व्यक्ति नियमित रूप से सूअरों के सम्पर्क में रहते है उन्हें इस फ्लू के संक्रमण का जोखिम अधिक होता है. यदि एक संक्रमित सुअर का मांस ठीक से पकाया जाये तो इसके सेवन से संक्रमण का कोई खतरा नहीं होता.

20वीं शताब्दी के मध्य मे, इन्फ्लूएंजा के उपप्रकारों की पहचान संभव हो गयी जिसके कारण, मानव मे इसके संचरण का सही निदान संभव हो पाया. तब से ऐसे केवल ५० संचरणों की पुष्टि की गई है. शूकर इन्फ्लूएंजा के यह उपभेद बिरले ही एक मानव से दूसरे मानव मे संचारित होते हैं. मानव में ज़ूनोटिक शूकर इन्फ्लूएंजा के लक्षण आम इन्फ्लूएंजा के लक्षणों के समान ही होते हैं, जैसे ठंड लगना, बुखार, गले में ख़राश, खाँसी, मांसपेशियों में दर्द, तेज सिर दर्द, कमजोरी और सामान्य बेचैनी.